Sunday, December 23, 2018

भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना


  
नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया। संविधान के 42वें संशोधन (1976) द्वारा यथा संशोधित यह उद्देशिका निम्न प्रकार है |
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई०मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी को
एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

 प्रस्तावना की मुख्य बातें :

संविधान की प्रस्तावना को संविधान की कुंजी' कहा जाता है।
प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केन्द्रबिन्दु अथवा स्रोतभारत के लोग ही हैं।
प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा-“हम भारत के लोग ...... इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मार्पित करते है। भारतीय लोगों की सर्वोच्च सम्प्रभुता का उद्घोष करते हैं।

प्रस्तावना' को न्यायालय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल, 1957 के निर्णय में घोषित किया गया।

बेरूबाड़ी यूनियन वाद (1960) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहाँ प्रस्तावना विधिक निर्वाचन में सहायता करती है।

बेरूबाड़ी वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना। इसलिए विधार्यिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती। परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के केशवानन्द भारत बनाम केरल राज्य वाद, 1973 में कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है। इसलिए विधायिका (संसद) उसमें संशोधन कर सकती है।
केशवानन्द भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय में मुल ढाँचा का सिद्धान्त (Theory of Basic Structure) दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढाँचा माना।

संसद संविधान की मुल ढाँचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है, स्पष्टतः संसद वैसा संशोधन कर सकती है, जिससे मूल ढाँचा का विस्तार व मजबूतीकरण होता है।

42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा इसमें समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष'औरराष्ट्र की अखण्डता' शब्द जोड़े गये।

भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत :

भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गयी है  |

संयुक्त राज्य अमेरिका : मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति,उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात 

ब्रिटेन : संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि-       निर्माण प्रक्रिया ।

आयरलैंड : नीति-निर्देशक सिद्धान्त, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन

आस्ट्रेलिया : प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान,  केन्द्र एवं राज्य के बीच  संबंध तथा शक्तियों का विभाजन, संसदीय विशेषाधिकार ।

जर्मनी : आपातकाल के प्रवर्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियाँ।

कॅनाडा : संघात्मक विशेषताएँ, अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र के पास, राज्यपाल की  नियुक्ति विषयक प्रक्रिया, संघ एवं राज्य के बीच शक्ति विभाजन ।

दक्षिण अफ्रीका : संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान

रूस : मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान ।

जापान : विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।

नोट : भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभावभारतीय शासन अधिनियम, 1935' का है। भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं जो 1935 ई० के अधिनियम से या तो शब्दशः ले लिये गये हैं या फिर उनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन के साथ लिया गया है।


भारतीय संविधान की अनुसूची :

प्रथम अनुसूची : इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों (28 राज्य) एवं संघ शासित (सात) क्षेत्रों  का उल्लेख है।

नोट : संविधान के 69वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है।

द्वितीय अनुसूची : इसमें भारतीय राज-व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति एवं उपसभापति, विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद् के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन आदि का उल्लेख किया गया है।

त्रित्तीय अनुसूची : इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, उच्चतम एवं | उच्च न्यायालय के न्यायाधीशो) द्वारा पद-ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है।

चौथी अनुसूची : इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्यसभा में प्रतिनिधि विवरण दिया गया है।
 
पाँचवीं अनुसूची : इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियत्रंण के बारे में उल्लेख है।

छठी अनुसूची : इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है।
 
सातवीं अनुसूची : इसमें केन्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बँटवारे के बारे में दिया गया है। 

इसके अन्तर्गत तीन सूचियाँ हैं-संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची

(i) संघ सूची : इस सूची में दिये गये विषय पर केन्द्र सरकार कानून बनाती है। संविधान के  लागू होने के समय इसमें 97 विषय थे।
(ii) राज्य सूची : इस सूची में दिए गए विषय पर राज्य सरकार कानून बनाती है। राष्ट्रीय हित से संबंधित होने पर केन्द्र सरकार भी कानून बना सकती है। संविधान के लागू होने के समय इसके अन्तर्गत 66 विषय थे।

(iii) समवर्ती सूची : इसके अन्तर्गत दिये गये विषय पर केन्द्र एवं राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं। परन्तु कानून के विषय समान होने पर केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया। कानुन ही मान्य होता है। राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून केन्द्र सरकार के कानून  बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है। संविधान के लागू होने के समय समवर्ती सूची में  47 विषय थे।

नोट : समवर्ती सूची का प्रावधान जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में नहीं है।

आठवीं अनुसूची : इसमें भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है। मूल रूप से 8वीं अनुसूची में 14 भाषाएँ थीं, 1967 ई० में सिंधी को और 1992 ई० में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली को 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया। 92वें संशोधन (2003), में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो को 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया।

नौवीं अनुसूची : संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गई। इसके अन्तर्गत राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है। इस अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं।

नोट : अब तक यह मान्यता थी कि संविधान की नौवीं अनुसूची में सम्मिलित कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती 11 जनवरी, 2007 के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा यह स्थापित किया गया है कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उध्वन न्यायालय इन कानूनों की समीक्षा कर सकता है।

दसवीं अनुसूची : यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 के द्वारा जोड़ी गई है। इन दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है।

ग्यारहवीं अनुसूची : यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा गयी है। इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किये गये हे |

बारहवी अनुसूची : यह अनुसूची संविधान में 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जड़िी गई है। इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने की 18 विषय प्रदान किये गये हैं।

देशी रियासतों का भारत में विलय :

रियासतों को  भारत में सम्मिलित करने के लिए सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेतत्व में  रियासती मंत्रालय बनाया गया।

जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर, हैदराबाद की रियासत का पुलिस कार्रवाई के माध्यम से और जम्मू-कश्मीर रियासत को विलय-पत्र पर हस्ताक्षर के द्वारा भारत में मिलाया गया।

संघ और उसका राज्य-क्षेत्र :

भारत राज्यों का संघ है, जिसमें सम्प्रति 28 राज्य और 7 केन्द्र-शासित प्रदेश है।

अनुच्छेद 1 :
(i) भारत अर्थात् इंडिया राज्यों का संघ होगा।
(ii) राज्य और उनके राज्य-क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में      विनिर्दिष्ट है।
(iii) भारत के राज्यक्षेत्र में अर्जित किये गये अन्य राज्य क्षेत्र समाविष्ट होंगे।

अनुच्छेद 2:

भारत की संसद को विधि द्वारा ऐसे निबंधनों और शर्तों पर जो वह ठीक समझे संघ में नये राज्य का प्रवेश या उनकी स्थापना की शक्ति प्रदान की गयी।

अनुच्छेद 3 :
नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन संसद विधि द्वारा कर सकती है।

राज्यों का पुनर्गठन :

भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं, इसकी जाँच के लिए संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश एस० के० धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की। इस आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया और प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया।

धर आयोग के निर्णयों की परीक्षा करने के लिए काँग्रेस कार्य समिति ने अपने जयपुर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैय्या की एक समिति का गठन किया । इस समिति ने भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग को खारिज कर दिया।

नेहरू, पटेल एवं सीतारमैय्या (जे० वी० पी० समिति) समिति की रिपोर्ट के बाद मद्रास राज्य के तेलुगू-भाषियों ने पोटी श्री रामुल्लू के नेतृत्व में आन्दोलन प्रारंभ हुआ।

58* दिन के आमरण अनशन के बाद 15 दिसम्बर, 1952 ई० को रामुल्लू की मृत्यु हो गयी।

रामुल्लू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने तेलुगू भाषियों के लिए पृथक् आन्ध्र प्रदेश के गठन की घोषणा कर दी। 1 अक्टूबर, 1953 ई० को आन्ध्र प्रदेश राज्य का गठन हो गया। यह राज्य स्वतंत्र भारत में भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य था। उस समय आन्ध्रप्रदेश की राजधानी कर्नूल थी।
  
नये राज्यों का गठन वर्ष :

राज्य - गठन वर्ष
आन्ध्र प्रदेश - 1953 ई०
महाराष्ट्र - 1960 ई०
गुजरात - 1960 ई०
नगालैंड - 1963 ई०
हरियाणा - 1966 ई०
हिमाचल प्रदेश - 1971 ई०
मेघालय - 1972 ई०
मणिपुर, त्रिपुरा - 1972 ई०
सिक्किम - 1975 ई०
मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा -1987 ई०
छत्तीसगढ़, उत्तराखंड एवं झारखंड -2000 ई०

राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष फजल अली थे; इसके अन्य सदस्य पं० हृदयनाथ कुंजरू और सरदार के० एम० पणिक्कर थे।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम जुलाई, 1956 ई० में पास किया गया। इसके अनुसार भारत में 14 राज्य एवं 6 केन्द्रशासित प्रदेश स्थापित किये गये।

नवम्बर, 1954 ई० को फ्रांस की सरकार ने अपनी सभी बस्तियाँ पांडिचेरी, यनाम, चन्दन, और केरीकल को भारत को सौप दिया; 28 मई, 1956 ई० को इस संबंध में संधि पर हस्ताक्षर , हो गये। इसके बाद इन सभी को मिलाकरपांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र' का गठन किया गया।

भारत सरकार ने 18 दिसम्बर, 1961 ई० को गोवा, दमन व दीव की मुक्ति के लिए पुर्तगालियों के विरुद्ध कार्रवाई की और उन पर पूर्ण अधिकार कर लिया। बारहवें संविधान संशोधन द्वारा गोवा, दमन व दीव को प्रथम परिशिष्ट में शामिल करके भारत का अभिन्न अंग बना दिया गया।

* 1 मई, 1960 ई० को मराठी एवं गुजराती भाषियों के बीच संघर्ष के कारण बम्बई राज्य का बँटवारा करके महाराष्ट्र एवं गुजरात नामक दो राज्यों की स्थापना की गयी।

* नागा आन्दोलन के कारण असम को विभाजित करके 1 दिसम्बर, 1963 ई० में नगालैंड को अलग राज्य बनाया गया।

* 1 नवम्बर, 1966 ई० में पंजाब को विभाजित करके पंजाब (पंजाबी भाषी) एवं हरियाणा (हिन्दी भाषी) दो राज्य बना दिये गये।

* 25 जनवरी, 1971 ई० को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।

* 21 जनवरी, 1972 ई० मणिपुर, त्रिपुरा एवं मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
* 26 अप्रैल, 1975 ई० को सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बना।
* 20 फरवरी, 1987 ई० में मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
* 30 मई, 1987 ई० में गोवा को 25वाँ राज्य का दर्जा
  दिया गया।

* 1 नवम्बर, 2000 ई० को छत्तीसगढ़, 26वाँ राज्य, 9 नवम्बर, 2000 ई० उत्तराचंल (अब उत्तराखंड) 27वाँ राज्य एवं 15 नवम्बर, 2000 ई० को झारखंड 28वाँ राज्य बनाया गया।
 
वर्तमान समय में भारत में 28 राज्य एवं 7 संघ राज्य क्षेत्र हैं। इन्हें ही संविधान की प्रथम  अनुसूची में शामिल किया गया है।

क्षेत्रीय परिषद : भारत में पाँच क्षेत्रीय परिषद् हैं। इनका गठन राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता  है और केन्द्रीय गृहमंत्री या राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत केन्द्रीय मंत्री क्षेत्रीय परिषद् का अध्यक्ष होता है। संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री उपाध्यक्ष होते हैं, जो प्रतिवर्ष बदलते रहते है।

* भारत में गठित कुल 5 क्षेत्रीय परिषदों पर सम्मिलित राज्यों के     नाम इस प्रकार है

1.उत्तरी क्षेत्रीय परिषद् : पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश  राज्य  तथा चण्डीगढ़ एवं दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र ।

2.मध्य क्षेत्रीय परिषद् : उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड एवं  छत्तीसगढ़.
3.पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् : बिहार, प० बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, असम, सिक्किम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश तथा मिजोरम ।

4.पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद् : गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा राज्य, दमन-दीव एवं दादर तथा  नागर  हवेली संघ राज्य क्षेत्र ।

5.दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद् : आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्य एवं पुदुचरी संघ राज्य क्षेत्र ।

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