Friday, December 14, 2018

भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास


1757 ई० की पलासी की लड़ाई और 1764 ई० के बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिये जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शासन का शिकंजा कसा इसी शासन को अपने अनुकूल बनाये रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई ऐक्ट पारित किये, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियाँ बनीं वे निम्न है.

 1773 ई० का रेग्यूलेटिंग एक्ट :- इस अधिनियम का अत्यधिक   संवैधानिक  महत्व है; जैसे

(a) भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और      नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया 
यह पहला कदम था। अर्थात् कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया।

(b) इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक  कार्यों को मान्यता मिली।

(c) इसके द्वारा केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी।

विशेषताएँ :-

1. इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर  जेनरल पद नाम दिया गया। तथा मुम्बई एवं मद्रास के गवर्नर को इसके अधीन किया गया। 
  
इस एक्ट के तहत बनने  वाले प्रथम गवर्नर जेनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिग्स थे ।

2. इस एक्ट के अन्तर्गत कलकता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार  स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता के उपयोग संयुक्त रूप से करते थे |

3. इस अधिनियम के अन्तर्गत कलकता में 1774 में एक उच्चतम  न्यायालय की स्थापना की गयी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश और थे।

इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इम्पे थे।
(अन्य तीन न्यायाधीश-1. चैम्बर्स, 2 लिमेस्टर, 3. हाइड.)

4. इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया।

5. इस अधिनियम के द्वारा, ब्रिटिश सरकार को कोर्ट ऑफ    डायरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया। इसे भारत में इसके राजस्व, नागरिक और सैन्य  मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया।

ऐक्ट ऑफ सेटलमेंट 1781 :- रेग्यूलेंटिग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इस एक्ट का प्रावधान किया गया। इस एक्ट के अनुसार कलकता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का प्राधिकार प्रदान किया गय |

 1784 ई० का पिट्स इंडिया एक्ट :- इस एक्ट के द्वारा दोहरे   प्रशासन का प्रारंभ हुआ.

(i) कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स - व्यापारिक मामलों के लिए.
(ii) बोर्ड ऑफ कंट्रोलर - राजनीतिक मामलों के लिए.

1793 ई० का चार्टर अधिनियम :- इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतनादि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गयी।

 1813 ई० का चार्टर अधिनियम :- इसके द्वारा
 
(i) कम्पनी के अधिकार-पत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।

(ii) कम्पनी के भारत के साथ व्यापार करने के 
   एकाधिकार को छीन लिया गया।
  • किन्तु उसे चीन के साथ व्यापार एवं पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 वर्षों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा।

(iii) कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के 
   लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया।


1833 ई० का चार्टर अधिनियम :-
(i) इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक 
   अधिकारपूर्णतःसमाप्त कर दिये गये ।

(ii) अब कम्पनी का कार्य ब्रिटिश सरकार 
   कि ओर से मात्र  भारत का शासन करना रह गया ।

(iii) बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर                जनरल कहा जाने लगा।

(iv) बम्बई तथा मद्रास की परिषदों की विधि निर्माण 
शक्तियों को वापस ले लिया गया।

(v) विधिक परामर्श हेतु गवर्नर जनरल की परिषद में 
विधि सदस्य के रूप में  चौथे सदस्य  को शामिल किया गया।

(vi) भारत में दास प्रथा को विधि विरुद्ध घोषित किया गया 
तथा 1843 में उसका उन्मूलन कर दिया गया | 

(vii) अधिनियम की धारा-87 कम्पनी के अधीन पद धारण  
करने के लिए किसी व्यक्ति को धर्म, जन्मस्थान मूल  व रंग के आधार पर अयोग्य न ठहराए जाने का उपबन्ध किया गया।
 
(viii) गवर्नर जनरल  की परिषद को राजस्व के संबंध में 
पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए गवर्नर जनरल को राजस्व के संबध में पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए गवर्नर जनरल सम्पूर्ण  देश के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया।

 (ix) भारतीय काननों का  वर्गीकरण किया गया तथा इस 
कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी। लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया।  

1853 ई० का चार्टर अधिनियम :- इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धान्त  समाप्त कर कम्पनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गयी।

1858 ई० का चार्टर अधिनियम :-

(i) भारत का शासन कम्पनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में  सौंपा गया।

(ii) भारत में मंत्रि-पद की व्यवस्था की गयी।

(iii) पन्द्रह सदस्यों की भारत परिषद् का सृजन हुआ।
     
(8 सदस्य ब्रिटिश सरकार द्वारा एवं  7 सदस्य कंपनी के 
  निदेशक मंडल द्वारा)

(iv) भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण
   स्थापित किया गया।
  • मुगल सम्राट के पद को समाप्त कर दिया गया।

(इस अधिनियम के द्वारा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स तथा बोर्ड 
 ऑफ कन्ट्रोल को समाप्त कर दिया गया )

भारत में शासन संचालन के लिए ब्रिटिश मंत्रिमंडल में एक सदस्य के रूप में भारत के राज्य सचिव (Secretary of State for India) की नियुक्ति की गयी। वह अपने कार्यों के लिए ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी होता था।

भारत के गवर्नर जनरल का नाम बदलकर वायसराय कर दिया गया।


1861 ई० का भारत शासन अधिनियम :-
(i) गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया गया.

(ii) विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ (लार्ड केनिंग द्वारा).

(iii) गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने 
   की शक्ति प्रदान की गयी।

(iv) गवर्नर जेनरल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा 
    प्रांत और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गयी।

1873 का अधिनियम :- इस अधिनियम द्वारा यह उपबन्ध किया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी को किसी भी समय भंग किया जा सकता है। 1 जनवरी, 1884 को ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया।

शाही उपाधि अधिनियम, 1876 :- इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की केन्द्रीय कार्यकारिणी में छठे सदस्य की नियुक्ति कर उसे लोक निर्माण विभाग का कार्य सौंपा गया। 28 अप्रैल, 1876 को एक घोषणा द्वारा महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया।

1892 ई० का भारत शासन अधिनियम :-
(i) अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई
(ii) इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस 
   करने तथा  कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।

1909 ई० का भारत शासन अधिनियम 
(मार्ले-मिन्टो सुधार) :-
i) पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया। इसके अन्तर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को साम्प्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया।

(ii) भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जेनरल की 
   कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई ।

(iii) केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान परिषदों को पहली बार 
बजट पर वाद विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर 
प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला।

(iv) प्रान्तीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी।

(v) सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका 
परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया।

 1919 ई० को भारत शासन अधिनियम 
 (माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) :-
 
(i) केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी- प्रथम राज्य परिषद् तथा दूसरी केन्द्रीय विधान सभा राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी,  जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था। केन्द्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी,जिनमें 104 निर्वाचित तथा 41 मनोनीत होते थे। इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था। दोनों सदनो के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने 
का अधिकार निचले सदन को था।

(ii) प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया। इस योजना के अनुसार प्रान्तीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया आरक्षित तथा हस्तान्तरित। आरक्षित विषय थे वित्त, भूमि कर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियाँ (criminal tribes), छापाखाना, समाचारपत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, वॉयलर, श्रमिक कल्याण, औद्योगिक विवाद, मोटरगाड़ियाँ, छोटे बन्दरगाह और सार्वजनिक सेवाएँ आदि।

नोट : प्रांतों में द्वैध शासन के जनक लियोनस कार्टियस थे।

हस्तान्तरित विषय :-

(i) शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन
     चिकित्सा सहायता.

(ii) सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उद्योग, तौल 
तथा मापसार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि।

(iii) आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से करता था; जबकि हस्तान्तरित विषय का प्रशासन प्रान्तीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों 
के द्वारा किया जाता था।

iv) द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया।

(v) भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत मे         महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है।

(vi) इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के 
   गठन का प्रावधान किया ।
 
नोट : माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार (भारत शासन अधिनियम-1919) द्वारा भारत में पहली बार महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला।

1935 ई० का भारत शासन अधिनियम :- 1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएँ और 15 परिशिष्ट थे। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं |

1. अखिल भारतीय संघ :- यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 चीफ कमीश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों। प्रान्तों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था। देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ की स्थापना-संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।
2. प्रान्तीय स्वायत्तता :- इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।

3. केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना :- कुछ संघीय विषयों (सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलो) को गवर्नर-जेनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया। अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर-जेनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गयी. जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था।

4.संघीय न्यायालय की व्यवस्था :- इसका अधिकार क्षेत्र प्रान्तो तथा रियासतों तक था। इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों व्यवस्था की गयी। न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी कौसिल (लंदन) को प्राप्त थी।

5. ब्रिटिश संसद की  सर्वोच्चता :- इस अधिनियम में किसी भी      प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था । प्रान्तीय विधान मंडल और संधीय व्यवस्थापिका इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे।

6. भारत परिषद् का अन्त :- इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् का अन्त कर दिया गया।

7. साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार :-  
संघीय तथा प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं में विधि सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल-भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों  और हरिजनों के लिए भी किया गया।

8. इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था ।

9. इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और  बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया।

1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम :-  
ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम' प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया। इस अधिनियम में 20 धाराएँ थीं। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं |

(i) दो अधिराज्यों की स्थापना :- 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिये जायेंगे,और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपी जायेगी।

(ii) भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जायेगी।

 (iii) संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना-जब तक संविधान सभाएँ संविधान का निर्माण नहीं कर लेतीं, तब तक वे विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगी।

(iv) भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिये जायेंगे।

(v) 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जबतक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तब तक उस समय  1935 ई०के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा।
 
(vi) देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अन्त कर दिया गया। उनको भारत या पाकिस्तान, किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित होने और अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी।







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